Posts

एक फौजी तानाशाह जिसने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को धोखा दिय

जिया उल हक़ के उस पकिस्तान में अदालतों का नंगा नाच  नोट - ये स्टोरी हमने पाकिस्तान के उन हालातों के ऊपर की है जब पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक़ की कमान के तहत फौजी हुकूमत सक्रिय थी || इसमें बताई गयी हर एक जानकारी का आधार पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो द्वारा लिखी गयी आत्मकथा ' मेरी आप बीती'  से लिए है ||  इस कहानी की शुरुआत होती है 5 जुलाई 1977 से जब पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल जिया उल हक़ ने वहां के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो को सत्ता से बेदखल कर दिया और फौजी हुकूमत कायम करने का हुक्म दे दिया || शायद यह पकिस्तान के इतिहास का सबसे बुरा दिन था जब पाकिस्तान के पहले लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए प्रधानमंत्री को क़ैद कर लिया गया  ||  ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को अपने ही एक राजनीतिक विपक्षी नेता की ह्त्या के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है || जनरल जिया 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने का वादा करते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है ||  भुट्टो पर कानूनी कार्यवाही की जाती है , मुक़दमे लाडे जाते हैं लेकिन सब एकतरफा सिर्फ एक ड्रामा जो पाकिस्तान की जनता को सबसे बड़े धोखे में रखे

राजनीतिक व्यक्तिओं को ये समझना चाहिए कि देश की राजनीति किसी की बपौती नहीं है

                 इस देश में युवाओं की भूमिका क्या है ? भारत एक प्रगतिशील बहु तादायद आबादी वाला राष्ट्र है || 2017 में  देश की कुल आबादी 133 करोड़ थी , अब तक थोड़ा और इजाफा हुआ होगा || इसी बीच एक आंकड़ा ये भी है की दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश हैं जहां युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है , तकरीबन 600 मिलियन युवा ऐसे हैं जो 25 साल की उम्र के नीचे  हैं || आंकड़ों के हिसाब से देखें तो देश की 50 प्रतिशत से ऊपर की आबादी युवाओं की है जो कि राष्ट्र के लिए बहुत ही अच्छी बात है  ||  लेकिन इन सबके बावजूद भी भारत में युवाओं की वो बेहतर स्थिति नहीं है जो हकीकत में होनी चाहिए || सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति युवाओं की राजनीति के क्षेत्र में है , 50 प्रतिशत युवा आबादी होने के बावजूद भी राजनीति में युवाओं की संख्या सिर्फ 6 प्रतिशत है जो कि बहुत ही निराशाजनक है || देश का भविष्य कहा जाने वाला युवा ही उस भविष्य से गायब है  किसी भी राष्ट्र के भविष्य का निर्माण उस देश के युवा , उस देश की जनता और उस देश की सरकार करती है || भारत में भी यही प्रचलन है लेकिन हैरत की बात ये है कि देश की सरकारें शायद युवाओं के

प्रधानमंत्री जी आपको जवाब देना होगा।।

Image
             जुल्मत को जिया सरसर को सबा बंदे को खुदा क्या लिखना              पत्थर को गुहर दीवार को दर कर्गस को हुमा क्या लिखना              ए मेरे वतन के फनकारों जुल्म्त पे न अपना फन वारो              ये महल सराहों के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो ॥ उपर की ये पंक्तियां पकिस्तान के बगावती शायर ' हबीब जालिब ' ने लिखी हैं॥ अब कुछ खोखले राष्ट्रवादी मुझको पाकिस्तान चले जाने का फरमान दे देंगे लेकिन खैर इससे कोइ फर्क़ नहीं पढ़ता है॥   इन पंक्तियों को दोहराते   रहना   चाहिये हर उस वक़्त पर जब सरकार दमनकारी नीतियों को अपनाने लगे और लोकतंत्र के उपर उठने का दुस्साहस करे॥ क्या प्रधानमंत्री खुद को लोकतंत्र से ऊपर समझते हैं ? अभी हाल मैं एक खबर आयी थी जिसमें प्रधानमंत्री को उनके महाराष्ट्र में दिये एक बयान के लिये चुनाव आयोग ने क्लीन चिट दे दी   जबकि इसी चुनाव आयोग के दो अधिकारियों ने इसका विरोध किया और चुनाव आयोग के संविधान का हवाला देते हुए ये कहा कि प्रधानमंत्री सैनिकों के नाम पर वोट मांगकर इसका उल्लंघन कर रहे हैं लेकिन इस

प्रधानमंत्री 12 करोड़ के फूलों के नीचे दब गए हैं।।

प्रधानमंत्री जी क्या आप के पास थोड़ा सा भी समय नहीं है जेट एयरवेज के इन 22000 हजार कर्मचारीओं  की व्यथा सुनने के लिए || 1992 में बनी जेट एयरवेज आज अपने आखरी पड़ाव की ओर मालूम होती है और इसके कर्मचारी अपने आखरी मुक़ाम पर || अभी कल ही कंपनी के एक कर्मचारी ने बहुमंजिला इमारत से कूद कर आत्महत्या कर ली || बहुत ही दुखद है ये जब अपनी रोजी रोटी को अपने हाथों से छिनता देख कर यह कर्मचारी मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर निकल आये हैं वहीं दूसरी ओर हमारे प्रधानमंत्री बनारस में 1.4 लाख लीटर पानी व् 12 करोड़ रूपये के गुलाब के फूल बनारस की सड़कों पर बर्बाद कर मेगा रोड शो करने में व्यस्त हैं || लगता है प्रधानमंत्री इन्ही 12 करोड़ रुपयों के ख़रीदे गए फूलों में दब गए हैं शायद इसीलिए उनके कानों तक इन कर्मचारिओं की आवाज नहीं पहुंच रही है ||   देश का यह दुर्भाग्य है कि  एक ओर सड़कों पर कर्मचारिओं के आंसू , उनकी उम्मीदें गिर रहीं हैं तो दूसरी ओर सड़कों पर देश के प्रधानमंत्री के लिए फूलों की वर्षा हो रही हैं वो भी तब जब समाज का एक वर्ग अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है || क्या प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की यह जिम्मेदारी

कहानी समाजवाद की

Image
                                              अध्याय तीन - समाजवादी भारत                                                      प्रस्तावना की स्थापना नमस्कार दोस्तों, आज बात होगी समाजवाद की , बात होगी समाजवादी सिद्धांतों की।।  मार्क्स के वामपंथी समाजवाद से लेकर लोहिया के समाजवाद तक सबकी बारी बारी से बात करेगें और बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि देश में चुनाव चल रहे हैं और इस चुनावी सरगर्मी को देखते हुए मालूम होता है कि देश मे समाजवाद का स्तर बहुत निम्न है।। तो आइए पढ़ते हैं समाजवाद का स्वर्णिम इतिहास।।                             हमारे देश का व्यवहार एवं इसकी आधारशिला ही समाजवादी है।।                                      समाजवाद क्या है ? देखो आसान भाषा में समझो दिन के सौ रुपये कमाने वाले मजदूर से लेकर कॉर्पोरेट कंपनियों के मालिकों तक सभी इस समाज का हिस्सा है।। और इन्हीं समाज के सभी वर्गों के हितों को सुरक्षित करना ही समाजवाद कहलाता है।। समाजवाद का अपना एक सिद्धान्त है कि कोई भी सम्पत्ति व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रीय संपत्ति या संपदा कहलाई जाएगी।। ब्रिटिश र

भारत का संविधान - भाग 2

अध्याय दो - प्रस्तावना की स्थापना नोट- इस अध्याय को समझने के लिए आपको अध्याय एक पढ़ने की आवश्यकता है जिसका लिंक नीचे दिया गया है।। https://thejankranti.blogspot.com/2019/04/indian-politics.html?m=1                  सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न 26 नवंबर 1949 को जब भारत के लोगों ने अपने संविधान को सर्वमत से अपनाया तो उसकी प्रस्तावना में तीन शब्द नामित किये गए जो कि इस प्रकार हैं:- 1- प्रभुत्व संपन्न 2- लोकतांत्रिक 3- गणराज्य इसके उपरांत 1976 में 42nd संसोधन अधिनियम के तहत 'समाजवादी' एवं 'पंथनिरपेक्ष' शब्द को जोड़ा गया और फिर हमारा भारत एक " सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य" बन गया।। ऊपर की इतनी जमीन तैयार करने से और मुख्य हैडिंग से आप समझ गए होंगे कि हम आज संप्रभुत्व भारत की बात करने जा रहे हैं।।  इसके लिए हमको इसे बारी बारी से समझने की आवश्यकता है।। सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न- इस शब्द से हमारा मतलब है कि भारत अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में किसी विदेशी सत्ता या शक्ति के अधीन नहीं है।। वह अपनी आंतरिक और बाहरी वि

जलियांवाला बाग में खूनी नरसंहार

13 अप्रैल 2019 ये आज की तारीख है लेकिन अगर हम इसके ठीक सौ साल पीछे जाएं 13 अप्रैल 1919 में तो ये जलियांवाला बाग हत्याकांड का मनहूस दिन है।। बैसाखी का त्योहार और जनरल डायर की कायराना हरकत उस दिन बैसाखी का त्योहार था अलग अलग समुदायों के तकरीबन साठ हजार लोग 3 मकानों से गिरे एक मैदान( जलियांवाला बाग) में एकत्रित हुए थे।।  वो दौर भगत सिंह का दौर था तब उनकी उम्र 12 वर्ष थी।। अंग्रेजी हुकूमत ने रॉलेट एक्ट लगा दिया था, देश भर में इसका पुरजोर विरोध हुआ और विरोध का पहला स्वर पंजाब के अमृतसर से निकला।। लोग शांति से अपना त्योहार मना रहे थे कि तभी सुनियोजित तरीके से जनरल डायर की फौज ने उस बाघ को तीनों तरफ से घेर लिया।। जो एक रास्ता बच भी गया था निकलने के लिए वो बहोत संकरा था।। इसी का फायदा उठाते हुए जनरल डायर ने निहत्थी मासूम भीड़ पर तब तक गोलियां चलाई जब तक कि  बंदूक खाली न हो गयी।। बाग की आंतरिक स्थिति ज्यों ही गोलियां चलाई जाने लगीं और लोग मरने लगे मैदान के अंदर की स्थिति भयवाह हो गयी।। सारा शांतिमय वातावरण चीत-पुकार में तब्दील हो गया।। जिसे जहां जगह मिली वहां छिप गया।। चूँकि मै